कृषि विज्ञान केंद्र के अधिकारियों एवं विशेषज्ञों द्वारा खेतों का किया जा रहा है निरीक्षण———–

जिले में वर्तमान में सोयाबीन की फसल में तने की मक्खी, सेमीलूपर, तंबाकू की इल्ली, गर्डलबीटल, चने की इल्ली एवं रोगों का प्रकोप होने संबंधी जानकारी कृषकों के माध्यम से प्राप्त हो रही है, जिसको ध्यान में रखते हुए कृषि विज्ञान केन्द्र के प्रधान वैज्ञानिक एवं प्रमुख डॉ. ए.के. बड़ाया, कीट वैज्ञानिक डॉ. मनीषकुमार एवं शस्य वैज्ञानिक डॉ. महेन्द्र सिंह द्वारा लगातार देवास जिले के विकासखण्ड खातेगांव, कन्नौद, सोनकच्छ, देवास एवं टोंकखुर्द के विभिन्न गांवों में कृषकों के खेतों में सोयाबीन फसल का निरीक्षण किया गया। भ्रमण के दौरान कृषि विज्ञान केन्द्र के वैज्ञानिकों के साथ उप-संचालक कृषि, वरिष्ठ कृषि विकास अधिकारी, ग्रामीण कृषि विस्तार अधिकारी एवं कृषक शामिल थे।

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निरीक्षण के दौरान कुछ खेतों में तने मक्खी, सफेदमक्खी, सेमीलूपर, चने की इल्ली एवंहरी अर्द्धकुण्डल इल्ली जैसे कीटों का प्रकोप देखा गया तथा कुछ गांवों के खेतों में घोंघा (स्नेल) का प्रकोप भी देखा गया। कहीं-कहीं पर सोयाबीन में पीला मोजेक, एंथ्राकनोज एवं जीवाणु स्फुटन (बैक्टीरियल पश्चुर) बीमारियों के लक्षण पाये गये। वैज्ञानिकों द्वारा किसानों को उपरोक्त कीटों एवं बीमारियों से बचाव के लिए सलाह दी गई।

वैज्ञानिकों ने बताया कि तनामक्खी, चक्रभृंगव सफेद/ हरे मच्छर के नियंत्रण हेतुटेट्रानिलिप्रोल 18.18 एस.सी. 250 एम.एल. या थायक्लोरप्रिड 21.7 एस.सी. 750 एम.एल. या लेम्डासायहेलोथ्रिन + थायमिथोक्सोजाम 125 ग्राम. याबीटासायफ्लूथ्रिन + इमिडाक्लोरपिड 350 एम.एल. प्रतिहेक्टेयर का 500 लीटरपानी के साथ उपयोग करें। उन्होंने बताया कि केवल सफेद मक्खी हैंतो ऐसी स्थिति में केवल थायमिथोक्सोजाम 25 डब्ल्यू.जी. 100 ग्राम प्रति हेक्टेयर 500 लीटर पानी के साथ उपयोग करें। उन्होंने बताया कि पत्ती खाने वाली इल्ली, हरी अर्द्ध कुंडल इल्ली, तंबाकू की इल्ली एवं चने की इल्ली की रोकथाम के लिए स्पाइनेटोरम 11.7 एस.सी. 450 एम.एल. प्रति हेक्टेयर या प्रोपेनोफॉस 50 ई.सी. 1.25 ली. याइमा बेक्टिनबेंजोएट 5 एस.जी. 300 ग्राम या टेट्रानिलिप्रोल 18.18 एस.सी. (250 एम.एल. /हेक्टेयर) या इंडोक्साकार्ब 15.8 ई.सी. 350 एम.एल. या फ्लूबेंडियामाइड 150 एम.एल. या क्लोरएन्ट्रानिलिप्रोल 18.5 एस.सी. 150 एम.एल. प्रति हेक्टेयर की दर से 500 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें।

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उन्होंने बताया कि पीला मोजेक के नियंत्रण हेतु रोग ग्रस्त पौधों को खेत से उखाड़कर निष्कासित करें तथा रोग फैलाने वाले वाहक सफेद मक्खी की रोकथाम के लिए उपरोक्त दी गई दवाओं का उपयोग करें। उन्होंने बताया कि फफूंद जनित एन्थ्रेकनोज नामक बीमारी के नियंत्रण हेतु टेबूकोनाझोल 625 मिली. या टेबूकोनाझोल + सल्फर 1 किग्रा. या पायरोक्लोस्ट्रोबीन 20 प्रतिशत डब्ल्यू.जी. 500 ग्रामयापायरोक्लोस्ट्रोबीन + इपिक्साकोनाजोल 50 जी/एल एस.ई (750 एम.एल. प्रति हेक्टेयर) या हेक्साकोनोझोल 5 प्रतिशत ईसी. 800 मिली. प्रति हेक्टेयर 500 लीटर पानी के साथ छिड़काव करें।

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उन्होंने बताया कि घोंघा/ स्नेल की रोकथाम के लिए खेत के किनारे झाडि़यों में 10 प्रतिशत नमक के घोल का छिड़काव करें और खड़ी फसल में डायफिनोथ्यूराम 50 डब्ल्यू.पी. 800 ग्राम/हेक्टेयर 500 लीटर पानी के साथ छिड़काव करें तथा इसके साथ-साथ घोंघा को इकट्ठा करके कीट नाशकयुक्त या नमक युक्त पानी में डालकर समय-समय परनष्टकरतेरहनाचाहिए ताकिइनकी संख्या को धीरे-धीरे कम किया जा सकता है और इनकी रोकथाम के लिए ब्लीचिंग पाउडर का भुरकाव खेत के किनारे पर झाडि़यों में करना चाहिए।

उन्होंने बताया कि अफलन की समस्या के सुधार के लिए घुलनशील बोरोन 500 ग्राम + चिलेटेडलोहा (आयरन) 500 ग्राम + चिलेटेड कैल्शियम 500 ग्राम या मैंकोजेब + कार्बंडाजिब 1.25 किग्रा. 500 लीटरपानी के साथ प्रति हेक्टेयर छिड़काव करें। 10 दिन बाद दुबारा दोहरायें तो काफी हद तक नुकसान को कम करने में आसानी होगी।

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